एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
आईने के सामने 

 

मेरे गालों पर लाली और 
नैनों में ख़ुमार 
रात को देखा हुआ अधूरा ख़्वाब है 
आईना सच कहता है 
चेहरे की झुर्री की तहों में 
यादों का बिछाया हुआ जाल है 
आईना सच कहता है 
मन कहता है आज फिर 
किसी अल्हड़ लड़की की तरह 
लपक कर दोनों हाथों में चाँद थाम लूँ 
पर चाँद में आज कहाँ है 
पहले सी चमक 
चाँद सच कहता है!

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