एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
नज़्म मुझे लिखती है 

जब दर्द का सागर तड़प उठा 
लहरों का सालना, 
आँखों को साहिल पार न कर सका 
होंठ किसी वीरान जज़ीरे की मानिंद अजनबी ही रहे 
तो नज़्म लिखना मेरे बस में कहाँ? 
नज़्म मुझे लिखती है 
जब तन्हाई के घने अंधेरे में 
आस का एक दीपक भी न हो 
मेघाच्छन्न रात में तारों के समान 
दोस्त नज़र न आएँ 
तो नज़्म लिखना मेरे बस में कहाँ? 
नज़्म मुझे लिखती है!

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