एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
सच की तलाश में 

इस सहरा में मेरा सफ़र 
न जाने कितनी सदियों से जारी है 
सच का सलीब पीठ पर उठाए 
फरेब से सजी धरती पर चलती रही 
एक आँख कहती है सब सच है 
एक आँख कहती है सब झूठ है 
मैं सच और झूठ के बीच में पेन्ड्युलम की तरह 
हरकत करती रही 
जानती हूँ कि वह दूर का पानी है 
दर असल मरीचिका है 
फिर भी दिल में उम्मीद लिये 
उसी ओर दौड़ती रही 
जानती हूँ कि सूरज की रोशनी में 
हमसफ़र, जो साथ हैं 
वे मेरी परछाइयाँ हैं 
साथ को सच समझकर 
हर रोज़ उनके साथ चलती रही 
एक आँख कहती है सब सच है 
एक आँख कहती है सब झूठ है 

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