एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
मन के अक्स

 मज़बूत समझते हो चट्टान की तरह 
विस्फोटित हो जाऊँ तो आबशार हूँ 
मेरा अक्स न बना 
वसीह समझते हो समुद्र की तरह 
बादल हूँ, बूँद बनकर उड़ूँ 
मेरा अक्स न बना 
चेहरे पर छाई खामोशी को न देख 
तड़प उठूँ तो तूफान हूँ 
मेरा अक्स न बना 
अपनी महदूद नज़र से न देख मुझे 
फैल जाऊँ तो सहरा हूँ 
मेरा अक्स न बना 
मेरी डोर को, हासिल ज़िन्दगी न समझ 
रुक जाऊँ तो लाश हूँ 
मेरा अक्स न बना। 

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