एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
तन्हाई का बोझ 

दोस्त, तुम्हारे फरेब के जाल से 
निकल तो आई हूँ 
मगर हक़ीक़त में दुनिया भी दुख देने वाली है 
रफ़ाक़त के झूठ को परख कर 
वजूद से काटकर तुम्हें फेंक दिया 
तो, बाक़ी रही भीतर की तन्हाई 
तन्हाई का बोझ लाश की तरह भारी है 
मैं सच्चाई की डगर की मुसाफिर हूँ 
पर उस ओर कौन सा रास्ता जाता है? 
तुम्हें परे करती हूँ तो सामने कोहरा है 
सोचती हूँ, जब तुम साथ थे 
वह साथ, सच था या झूठ 
पर मेरा वजूद बहुत हल्का था 
आज फिर मेरे पंख उड़ने के लिए उत्सुक हैं 
धरती तो तपते तांबे की तरह है 
दर्द का तो यहाँ अन्त ही नहीं 
दर्द ऐसा सागश्र है, जिसका दूसरा किनारा नहीं 
मैं दूसरे किनारे की तलाश में 
उम्मीद की कश्ती बनाकर निकली हूँ!     

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