एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
एक अजीब बात 

जो भी सुनता है 
चौंक उठता है 
आज एक लड़की ने 
सदके के कुरबान गाह पर 
सर टिकाने से इन्कार किया है 
उसने जीना चाहा है, पर 
लोग तन्ज़ के पत्थर लेकर 
संगसार करने आए हैं 
शौहर को ख़ुदा मानने से इन्कार किया है 
क़ुफ्र किया है! 
उसने जीना चाहा है 
रोटी, कपड़े और मकान के लिये 
संघर्ष करना चाहा है 
बख़शीश में मिले जीवन को 
स्वीकार नहीं किया है 
अपनी बागडोर को औरों के हाथ से छीना है 
खुद को इन्सान समझकर 
फैसले करने का हक़ चाहा है 
उसने जीना चाहा है 
सदियों से पहना चिह्न, गले से उतारा है 
रोशनी की एक किरण के लिये 
रीति-रस्मों को उलांघा है 
उसने जीना चाहा है 
जो भी सुनता है 
चौंक उठता है! 

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