एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
बर्दाश्त 

बर्दाश्त के जंगल में 
मेरी आँखों से 
तेरी याद की चिंगारी गिर पड़ी 
ख़ुशियों के मेले में 
दिल को फिर नये ग़म की 
भनक पड़ गई 
तेरे मेरे दरमियान आसमाँ है फ़ासला 
देखते देखते नज़र थक गई 
सहरा में भटकती हिरणी की प्यास की तरह 
प्रीत मरती जीती रही! 

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