एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
यह सोचा भी न था 

यादों के बबूल, गुलाब की तरह 
मन आँगन में खिल उठेंगे 
यह तो मैंने सोचा भी न था! 
फ़ासले अमावस के अँधेरों को उकेर कर 
चौदवीं के चाँद की तरह 
मुझसे नैन मिलायेंगे 
यह तो मैंने सोचा भी न था 
मैं समझी थी 
गुज़रा वक़्त वापस न आएगा 
मेरे कमरे के आईने में 
बिछड़े चेहरे 
मुस्कुरा कर मुझे सीने से लगाएँगे 
यह तो मैंने सोचा भी न था! 

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