अम्मा, रस्मों रिवाज़ों के धागों से बुनी
तार-तार चुनर मुझसे वापस ले ले
मैं तो पैबंद लगाकर थक गई
वो अपनी बेटी को कैसे पेश करूँगी?
अम्मा, बन्द दरवाज़ा, जिसकी कुंडी
तुम्हें भीतर से बंद करने के लिये कहा गया है
खोल दे, नहीं तो मेरा क़द
इतना लम्बा हो गया है
कि वहाँ तक पहुँच सकती हूँ
माँ मुझे माफ़ कर देना
तुझे छोड़ कर जा रही हूँ
क्योंकि, अपनी बेटी को अँधेरों में
ठोकरें खाते हुए देख नहीं पाऊँगी
मैं कुतिया तो नहीं
जो एक निवाले की ख़ातिर
भाई, बाप, ससुर, पति और बेटे का मुँह तकती रहूँ
और उनके क़दमों में लोटती रहूँ
अम्माँ, यह रोटी का चूरा मुझे मत परोस
जो तुझे भी ख़ैरात में मिला है
अब्बा की विरासत की चौथाई
और पति के हक़ महर के अहसान का
फंदा अपनी गर्दन से निकालना चाहती हूँ
अगर जीता जागता जीव हूँ तो
जीने की ख़ातिर संघर्ष करूँगी
मैं अपने ज़हन को, रवायत के अनुसार
पिंजरे में बंद करके, किसी को सौंप नहीं सकती
चादर के नकाबों और बुर्के की मोटी जाली से
दुनिया को देखना नहीं चाहती
वहाँ से दुनिया ज़्यादा धुंधली नज़र आती है
मैं अगर चारदीवारी में बंद हूँ
तो भी जानती हूँ, कि
बाहर इन्सान, दुश्मन देव, आदम बू आदम बू करते हुए
शहर में घुस आया है
घर के मर्द मुझसे इमाम ज़ामिन बंधवाकर
खंजर और भाले लेकर लड़ने के लिये जा रहे हैं
और मुझसे कहते हैं कि खिड़कियों के झरोखों से तमाशा देख
उस देव से ख़तरा तो मेरे वजूद को भी है
फिर अपने बचाव के लिये क्यों न लडूँ?
यह कैसी ज़िन्दगानी है
कि रोटी की तरह जीवन भी मुझे झोली में मिलता है
मैं झोली भरने वाले ‘सख़ी’ की दरबार में मुजावर बनकर
अपने आप को अर्पण कर देती हूँ
अम्मा, मुझे मोहताजी की यह कौन सी घुट्टी पिलाई है
जो सभी अंग सलामत होने के बावजूद
रहम के क़ाबिल नज़र आती हूँ
यह देखो, मेरा हाथ कुंडी तक पहुँच गया है
अब्बा के आँगन में रखे पिंजरे से
अपने ज़हन को आज़ाद किये ले जा रही हूँ
मुझे अगर तुम याद करो और,
मेरे लिये कुछ करना चाहो
तो सूरज के होते हुए
अंधेरे में रहने के कारण पर कुछ सोचना
अगर कोई भी कारण समझ में न आए
तो भीतर से कुंडी खोल देना
बाहर वसीह आसमान के तले, खुली हवा में
अगर मैं तुम्हें नज़र न भी आई
तो मेरी बेटी या नातिन की
आज़ाद आवाज़ की गूँज तुम ज़रूर सुनोगी!
विषय सूची
- प्रस्तावना
- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
- जज़्बात का क़त्ल
- शोकेस में पड़ा खिलौना
- रिश्ते क्या हैं, जानती हूँ
- सहारे के बिना
- तख़लीक़ की लौ
- काश मैं समझदार न बनूँ
- मन के अक्स
- उड़ान से पहले
- शराफ़त के पुल
- एक अजीब बात
- नया समाज
- प्रीत की रीत
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- मुहब्बतों के फ़ासले
- विश्वासघात
- आत्मकथा
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- शरीयत बिल
- धरती के दिल के दाग़
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- बर्दाश्त
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- मुहब्बत की मंज़िल
- ज़ात का अंश
- अजनबी औरत
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- एक माँ की मौत
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- बीस सालों की डुबकी
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- क़ीमे से बनता है चाग़ी का पहाड़
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- फ़ासला
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- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- अनूदित कहानी
- पुस्तक समीक्षा
- बात-चीत
- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
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