एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
उड़ान से पहले 

अम्मा, रस्मों रिवाज़ों के धागों से बुनी 
तार-तार चुनर मुझसे वापस ले ले 
मैं तो पैबंद लगाकर थक गई 
वो अपनी बेटी को कैसे पेश करूँगी? 
अम्मा, बन्द दरवाज़ा, जिसकी कुंडी 
तुम्हें भीतर से बंद करने के लिये कहा गया है 
खोल दे, नहीं तो मेरा क़द 
इतना लम्बा हो गया है 
कि वहाँ तक पहुँच सकती हूँ 
माँ मुझे माफ़ कर देना 
तुझे छोड़ कर जा रही हूँ 
क्योंकि, अपनी बेटी को अँधेरों में 
ठोकरें खाते हुए देख नहीं पाऊँगी 
मैं कुतिया तो नहीं 
जो एक निवाले की ख़ातिर 
भाई, बाप, ससुर, पति और बेटे का मुँह तकती रहूँ 
और उनके क़दमों में लोटती रहूँ 
अम्माँ, यह रोटी का चूरा मुझे मत परोस 
जो तुझे भी ख़ैरात में मिला है 
अब्बा की विरासत की चौथाई 
और पति के हक़ महर के अहसान का 
फंदा अपनी गर्दन से निकालना चाहती हूँ 
अगर जीता जागता जीव हूँ तो 
जीने की ख़ातिर संघर्ष करूँगी 
मैं अपने ज़हन को, रवायत के अनुसार 
पिंजरे में बंद करके, किसी को सौंप नहीं सकती 
चादर के नकाबों और बुर्के की मोटी जाली से         
दुनिया को देखना नहीं चाहती 
वहाँ से दुनिया ज़्यादा धुंधली नज़र आती है 
मैं अगर चारदीवारी में बंद हूँ 
तो भी जानती हूँ, कि 
बाहर इन्सान, दुश्मन देव, आदम बू आदम बू करते हुए 
शहर में घुस आया है 
घर के मर्द मुझसे इमाम ज़ामिन बंधवाकर 
खंजर और भाले लेकर लड़ने के लिये जा रहे हैं 
और मुझसे कहते हैं कि खिड़कियों के झरोखों से तमाशा देख 
उस देव से ख़तरा तो मेरे वजूद को भी है 
फिर अपने बचाव के लिये क्यों न लडूँ? 
यह कैसी ज़िन्दगानी है 
कि रोटी की तरह जीवन भी मुझे झोली में मिलता है 
मैं झोली भरने वाले ‘सख़ी’ की दरबार में मुजावर बनकर 
अपने आप को अर्पण कर देती हूँ 
अम्मा, मुझे मोहताजी की यह कौन सी घुट्टी पिलाई है 
जो सभी अंग सलामत होने के बावजूद 
रहम के क़ाबिल नज़र आती हूँ 
यह देखो, मेरा हाथ कुंडी तक पहुँच गया है 
अब्बा के आँगन में रखे पिंजरे से 
अपने ज़हन को आज़ाद किये ले जा रही हूँ 
मुझे अगर तुम याद करो और, 
मेरे लिये कुछ करना चाहो 
तो सूरज के होते हुए 
अंधेरे में रहने के कारण पर कुछ सोचना 
अगर कोई भी कारण समझ में न आए 
तो भीतर से कुंडी खोल देना 
बाहर वसीह आसमान के तले, खुली हवा में 
अगर मैं तुम्हें नज़र न भी आई 
तो मेरी बेटी या नातिन की 
आज़ाद आवाज़ की गूँज तुम ज़रूर सुनोगी! 

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