एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
झुनझुना 

दीवारों, दर-दरीचों और छत की 
तरतीब को घर कहते हैं 
उसी घर में रहने के लिये 
जिस्म का झुनझुना बजाकर 
तुम्हें बहलाए रखना है 
पर क्या किया जाय? 
हाथ में थामे इस झुनझुने 
और मेरे जिस्म में फ़र्क़ 
मुझे मालूम हो चुका है 
आसमानी किताब कहता है कि 
मैं तुम्हारी खेती हूँ 
जब भी, जैसे भी चाहो 
उस फ़सल को काट सकते हो 
पर क्या किया जाय! 
मेरी सोच और शऊर के अंकुर 
तुम्हारी हँसिया के पकड़ में नहीं आएँगे! 

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