एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
आईना मेरे सिवा

 

ऐसे ही कभी चलते चलते 
वक़्त के पीछे दौड़ते 
अगर मैं रुक गई! 
यकीन करना कि मैं धरती पर न रहूँगी 
मैं कहाँ रहूँगी 
यह मैं कैसे जानूँगी 
याद का काँटा तुम्हें चुभ जाये 
मेरे बाद तेरी आँखों में अश्रु आ जाएं 
उन्हें मैं कैसे पोछूँगी? 
मंजर और सभी आँखों में समा जायेंगे 
आईना मेरे सिवा कैसा लगता है 
यह मैं कैसे देखूँगी?

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