एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
इन्तहा 

 

आज, जब उसका पेट भी 
गले तक भर गया 
तब दर्द ने जुगाली की है 
जुदाई की डायन भी तड़प उसी 
फ़ासले का भी हृदय फटा है 
जिन्दगी की किताब भी रही अधूरी 
न जाने कहाँ कहाँ से पन्ना फटा है 
ज़िन्दगी के गले में पहनी 
रिश्तों की माला कमज़ोर थी 
दाना दाना होकर मोती बिखरा है! 
            

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