प्यार तो मुझसे बेशक करते हो
तुमने रोटी, कपड़ा और मकान देने का
वादा किया है
उसने बदले में जीवन मेरा गिरवी रखा है
मुझे घर की जन्नत में
खुला छोड़ दिया है
जहां विवेक के पेड़ में सोच का फल उगता है
रोज़ उगता सूरज मुझे आगे बढ़ने के लिये उकसाता है
आज वह फल खाया है, तो
आपे से निकल गए हो
सोच ने ज़हन की सारी खिड़कियाँ खोली हैं
तुम्हारी जन्नत में दम घुटता है
फ़ैसले करने की आज़ादी चाहती हूँ
सोच में फल ने ताक़त बख्शी है
रोटी, कपड़ा और मकान आसमान के तारे तो नहीं
जिन्हें तुम तोड़ सकते हो
और मैं तोड़ नहीं सकती?
रीतियों, रस्मों, क़ानून, मज़हब
पहाड़ बनाकर आड़े न लाओ
समझ की उँगली पकड़ कर
सभी कठिनाइयाँ पार कर जाऊँगी
प्यार तो मुझे बेशक करते हो
पर प्यार को नकेल बनाकर नाक में तो मत डालो
हाँ! विवेक के पेड़ से
सोच का फल तुम भी खाओ
आओ तो फूल और ख़ुशबू की तरह प्यार करें!
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