एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
अधूरे ख़्वाब 

 

अधूरे ख़्वाब, मेरी आँखों में 
टूटे शीशे की मानिंद चुभते ही रहे 
अधूरे बालक की सिसकियाँ 
मेरी कोख में उधम मचाती ही रहीं 
उसका कोई नाम हो तो पुकारूँ 
वजूद हो तो छूकर देखूँ 
जज़्बे ममता के इसरार के 
लफ़्ज़ ढूँढते ही रहे 
उसके वजूद की ख़ुशबू 
मेरे हवासों की तहों में गुम हो गई 
अधर और छाती के बीच में 
मौत फासला बनकर फैल गई 
मेरी उंगलियों के पोर 
स्पर्श ढूँढते ही रहे 
अधूरे बच्चे के लिये 
ममता का पूरा जज़्बा 
सम्पूर्ण दर्द बनकर 
वजूद में समा गया!

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