एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
धरती के दिल के दाग़

 

हर औरत यह जानती है कि 

शराफ़त सर पर ओढ़ी चुनरी का नाम नहीं है 

जिसे सर पर ओढ़ने के लिये तुम 

नायक की तरह हुक्म देते हो 

मैं तारीख़ की पीड़ाओं से 

जन्म लेने वाला शऊर हूँ 

जिसे ख़ाकी वर्दी, लाँग बूट 

कुचल नहीं पाएंगे 

तेरी थोपी हुई ख़्वाहिशों के ख़िलाफ़ 

सारी दुनिया के हुनरमंदों को 

साथ देने के लिये आवाज़ दूँगी 

ज़ुल्म की कोई भी लाठी 

यह कहने से रोक न सकेगी 

कि शरीयत बिल मुझे मंजूर नहीं!

धरती के दिल के दाग़ 

मेरी सम्पूर्ण कायनात 

आपकी गोली के घेरे में है 

अपने बेटे को 

हाथों से खाना खिलाती हूँ 

आपके पत्थर जैसे चेहरे को देखकर 

निवाला उसके हलक में अटका तो होगा 

मैंने तो हमेशा बच्चे को 

प्यार भरी लोरियाँ सुनाईं 

चंगुल से तुम्हारे अगर बचा भी 

तो क्या इन्सानियत पर विश्वास कर पाएगा? 

मैं जानती हूँ कि आपकी मर्ज़ी के आगे 

गर्दन न झुकाने के एवज़ 

राजेश की तरह मेरा बच्चा 

फांक-फांक होकर, खून में नहाकर लौट आयेगा 

पर ऐ इन्सानी वजूद के दुश्मन 

मैं तुम्हारे आगे कोई भी अपील नहीं करूँगी 

मेरी सारी ख़ुशियाँ 

आपकी गोली के घेरे में है 

मेरा साथी 

जिसके साथ जीवन का हर पल बाँटती हूँ 

ज़ुल्म के पिंजरे में क़ैदी है 

खून पसीना देकर 

यह छत हमने बनवाई है 

इन्सानी खून चूसने वाले जौक जैसे लोगो 

मैं तुम्हारे सामने कोई अपील नहीं करूँगी 

कितनी बहनें, माताएँ

सुहागनें, महबूबाएँ 

तुम्हारे इस घिनौने क़िरदार के कारण 

जुदाई की फाँसी पर लटक गई हैं 

गर्भवती औरतों के पेट में 

बच्चों ने हरकत करनी छोड़ दी है 

कितने ही पिता अपने बुढ़ापे को 

गले लगाकर रो रहे हैं 

बच्चे पिता के लिये सिसक-सिसक कर सोए हैं 

भाइयों ने सब कुछ बेचकर 

अफ़ीम इकट्ठा किया है 

समाज को कीड़े की तरह खाने वाले 

मैं तुम्हारे सामने कोई भी अपील नहीं करूँगी 

हमीद घांघरों, सिंध की शूरवीर सपूत 

ज़िया जैसे आमर के आगे 

हरगिज़ न झुकी 

मेहंदी रचे हाथों से 

सर ऊँचा किये 

महबूब की क़ब्र पर मिट्टी डाली 

नन्हीं बच्ची को पीढ़ाओं का पाठ पढ़ाया 

वक़्त से पहले बड़ा किया 

वही आज माणिक थेबे के आगे 

रो पड़ी है 

अपनी शक्ति को भुला बैठी है 

क़ौमी ग़ैरत के नाम पर 

कायरों के सामने अपील की है 

ऐ उभरते शऊर के दुश्मनों 

मैं कोई भी अपील तुम्हारे सामने नहीं करूँगी! 

तुम जो मेरी ज़बान में बात करते हो 

पर हर्गिज़ मेरे अपने नहीं हो 

मुखिया की कोख से जन्म लेने वाली

हरामी औलाद हो 

जिसे पुलिस ने प्यार से पालकर बड़ा किया है 

स्वार्थी सियासतदानों ने चूमकर 

सीने से लगाया है 

धरती के माथे पर लगी कालिख के दाग़ हो 

मैं कोई भी अपील तुम्हारे सामने नहीं करूँगी! 

आपको धरती से जड़ों समेत उखाड़कर 

फेंकने की ख़ातिर तख़लीफ को फावड़ा बनाऊँगी 

भयभीत, डरे हुए इन्सानों के भीतर 

शक्ति बनकर उभर आऊँगी 

बारूद के ढेर पर गर्व करने वाले वहशियो! 

तुम साम्राज्य की ओर से मढ़ी हुई लानत हो 

निर्बल पर जुल्म करने वालो 

सिन्ध की तारीख का ख़ूनी बाब हो 

मैं किसी यज़ीद के हुक्म की पैरवी करने वाले शमर को 

हसीन का खौफ़ माफ़ नहीं करूँगी 

बलवान क़ौम बनकर, वजूद की सलामती के लिये 

आपको आपकी सोच सहित 

मिटा दूँगी...!

<< पीछे : शरीयत बिल  आगे : प्रस्तावना >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता

पुस्तकें

लेखक की पुस्तकें
लेखक की अनूदित पुस्तकें
अनुवादक की पुस्तकें