महफ़िल में रक़ीब आए मुस्कुराते हुए

01-07-2024

महफ़िल में रक़ीब आए मुस्कुराते हुए

मधु शर्मा (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

महफ़िल में रक़ीब आए मुस्कुराते हुए, 
हमें देख वापस हो लिये झुँझलाते हुए। 
 
राज़ कौन सा छुपा रहे हैं न जाने हमसे, 
गुज़र गये सामने से वो नज़रें चुराते हुए। 
 
वापस माँगते शर्मा रहा उधार देने वाला, 
और क़र्ज़दार चलते बने बात घुमाते हुए। 
 
क़यामत जल्द आने वाली है जब से सुना, 
दिल खोल बैठे कंजूस कंजूसी भुलाते हुए। 
 
अपने ही अज़ीज़ थे रंग में भंग डालने वाले, 
सौ दफ़ा सोचिएगा अगली दफ़ा बुलाते हुए। 
 
ग़म अपना छुपाकर जग को हँसाता था जो, 
रुख़्सत हो गया आज सभी को रुलाते हुए। 

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