भाग्यवान

01-09-2024

भाग्यवान

मधु शर्मा (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

“लो भाग्यवान, गंगा-पुल के बाहर ये ताज़ा-ताज़ा गाजर बिकती देख मुझसे रहा न गया सो ले आया। क्या कहती हो, आज गाजर का हलुआ बन जाये?” 

“वो तो बना दूँगी, लेकिन ‘भाग्यवान’ मैं नहीं, गंगा-पार रहने वाली आपकी वे सखियाँ हैं जिनके बीच आप मेरे हिस्से का प्रेम बाँटने अक्सर घर से या काम से सीधा ही निकल पड़ते हैं।”

पत्नी आँखों में उमड़े आँसुओं को रोकते हुए पति को यह कहते हुए भी कह न सकी। कारण? उसका दोष केवल यही था कि सुन्दर होते हुए भी वह एक पढ़े-लिखे शहरी प्रोफ़ेसर की कम पढ़ी-लिखी ग्रामीण पत्नी जो थी। 

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