अमीर बनाम ग़रीब

15-07-2024

अमीर बनाम ग़रीब

मधु शर्मा (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ए.सी. हवेली में बैठकर धनी धन गिनता है, 
पसीना बहा निर्धन उसकी तिजोरी भरता है। 
 
अमीरों के लिए मक़बरे, ताजमहल बनते हैं, 
दो गज़ ज़मीं नसीब नहीं जब ग़रीब मरते हैं। 
 
अमीरों के कुत्तों तक के पास गद्देदार बिस्तर, 
ठिठुरती रातों में इन्सान सो रहे फ़ुटपाथ पर। 
 
मनाही घी-चीनी की, रोग अमीरों के अजीब, 
रोटी सूखी खाकर भी सदा निरोगी रहे ग़रीब। 
 
वारी जाएँ झोंपड़ी वाले उस दुल्हा-दुल्हन पर, 
दहेज़ के पैसों से जिन्होंने बनवा दिये ढेरों घर। 

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