एक थका हुआ सच

 

मुक़र्रर किये हुए अज़ाबों की व्याख्या 
टीका बनकर, शर्मिंदगी के मारे 
गर्दन झुकाए खड़ी है 
अगर वो एक बार सर ऊपर उठाकर 
माँ के नयनों में देखे 
तेरी क़सम 
ख़ाक बन जाये 
तुम्हारी जज़ा और सज़ा से 
वह माँ अब क्या डरेगी 
जो कोर्ट के कटघरे तक पहुँचने के लिये 
पुलीस, प्रेस और वकीलों के 
गलीज़ वाक्यों के बिच्छुओं जैसे डंकों से 
रूह तक डसी हुई है!

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