एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
सरकश वक़्त 

ख़्वाहिशों की चिंगारी 
सपनों की हवा से भड़क कर 
पहाड़ जितनी हो गई है 
वक़्त से बड़ा सरकश कौन है? 
ज़माने की हक़ीक़तें समन्दर बनकर 
जब सामने आती हैं 
आसमान से बतियाती ख़्वाहिशों का शोला 
सपनों के आग़ोश से निकलकर 
समन्दर जैसे वक़्त के सीने पर 
गर्दन टिकाकर लेटा रहता है! 

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