भूख (राजेश ’ललित’)

01-11-2020

भूख (राजेश ’ललित’)

राजेश ’ललित’ (अंक: 168, नवम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

सुबह सुबह तो
भूख सजी थी
पोहे आलू पूरी की
पत्तल, थाली ख़ाली थी
भूख वहीं की वहीं रही।
 
भरी दुपहरी आग लगी है
रोटी, भाजी, तरकारी की
पेट सिकुड़ कर रह गया
भूख को मिली न ठौर कहीं
भूख वहीं की वहीं रही
 
रात हुई जब घनी घनेरी
लकड़ी में जब आग लगी 
भूख में अब कुछ आस लगी
दाल भात जब चढ़े भगौना
आज की भूख तो ख़त्म हुई
  
सुबह सुबह फिर भूख लगेगी
थाली पर तब आँख लगेगी
बार बार क्यूँ भूख लगे है?
तन मन को खा जायेगी
भूख मौत संग जायेगी

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