मन की उमस
बहुत हुआ ताप बस
अब तो बरस
खुले बहाव के दिन
कटोरा भर अभाव के दिन
आषाढ़ के दिन
छत से उड़ी
तिरपाल के दिन
हर ईंट से रिसते पानी
सीली सीली लकड़ी
बुझे हुए अलाव के दिन
आषाढ़ के दिन
तटबंध तोड़ती नदियाँ
बहते बहते खेत
टापू टापू हुये
गाँव के दिन
जन का जन से
कटाव के दिन
आषाढ़ के दिन
बाढ़ के दिन
साँपों के ज़हर से
बिच्छुओं के डंक से
दर्द के सैलाब में
आँख के भराव के दिन