माया से नाता 

15-03-2025

माया से नाता 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मैंने बहुत सोचा
बहुत समझा 
मन भरमाया . . . 
मन के चंगुल में फँस 
सुख-शान्ति को ग्रहण लगाया। 
 
बुद्धि विवेक को लगा जंग
भाँति-भाँति के डरों ने डराया।
समय व्यर्थ ही गँवाया 
मानव जीवन का मूल्य समझ न पाया . . . 
 
मन की सुनते-सुनते 
बुद्धि हुई घन-चक्कर 
भोगों ने मुझको भोगा 
जब तक यह मेरी समझ में आया।
तब तक मन ने अपना कार्य निपटाया। 
 
लोभ, मोह, क्रोध, काम का व्यसनी
विस्तृत जाल में फँसा 
सोच-समझ सब हुईं धूमिल 
स्वजीवन नर्क बनाया 
रे मन! तूने भटक-भटक 
माया से ही नाता जोड़ा . . . 

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