दीप जलाएँ

01-10-2022

दीप जलाएँ

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

आओ सब जन मिलकर दीप जलाएँ। 
अँधेरा मिटाकर उजाला घर ले आएँ॥
 
आओ सब जन मिलकर रंगोली सजाएँ। 
घर-आँगन में ढेरों ख़ुशियाँ बिखराएँ॥
 
रात अमावस की काली-काली तो क्या
दीपशिखा से कोना-कोना करें प्रकाशित, 
आओ सब जन मिलकर दिवाली मनाएँ॥
 
हृदय से झूठ, छल, कपट सब मिटाएँ। 
बस प्रेम के दीपक सदा घर-घर जलाएँ॥
 
मन में लेकर मधुरता ख़ूब मुस्कुराएँ। 
मिटाके तिमिर, ज्योतिर्मय सब हो जाएँ॥
 
आओ सब जन मिलकर दीप जलाएँ। 
नभ-मंडल तक ख़ुशियाँ बिखराएँ॥‌

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
चिन्तन
काम की बात
किशोर साहित्य कविता
लघुकथा
बाल साहित्य कविता
वृत्तांत
ऐतिहासिक
कविता-मुक्तक
सांस्कृतिक आलेख
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में