कृषक दुर्दशा

01-03-2023

कृषक दुर्दशा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


दीन-हीन किसान 
क़र्ज़ का मारा 
स्वयं रहे भूखा
पर संसार की भूख मिटाता। 
 
साधन विहीन 
रहता चिंतित हमेशा 
कहते लोग सेठ उसे 
करते अपमानित . . . 
फटे-पुराने चिथड़ों में 
करता रहता हरदम काम 
कर्म संत से पूजित उसके 
पर चूस रहा उसको संसार। 
 
कुछ धन्ना सेठ बने नाम के किसान 
दिखा रहे दौलत-शोहरत 
सरकार देख उनकी ख़ुशहाली 
करती विज्ञापन बाज़ी! 
पर सच में, 
असली किसान 
पीड़ा से तड़प रहे 
और चूम रहे फाँसी के फँदे। 
 
कृषक दुर्दशा
लिखी न जाये/
कही न जाये/
सुनाई न जाये/
देखी न जाये . . .

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