हे प्रभु! 

15-05-2023

हे प्रभु! 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

हे ईश्वर! 
हे विधि के विधाता! 
ये कैसा विधान है तुम्हारा? 
तुम सर्वव्यापक/
तुम सर्वांतर्यामी/
तुम दयानिधि/
तुम दया के भंडार। 
फिर क्यों करते हो भेदभाव—
कोई महलों का वासी 
तो किसी पर झोपड़ा तक नहीं 
कोई एयर कूलर में 
तो कोई तपता भरी जेठ की दोपहरी 
कोई खाता काजू, बादाम, पिस्ता 
तो कोई दो जून की रोटी को तरसा। 
 
हे प्रभु! 
मुझे शिकायत है तुमसे 
तुम न्यायकारी नहीं हो . . . 
स्वार्थी इंसान और तुम्हारी नियत में 
मुझे कुछ ख़ास अंतर नज़र नहीं आता। 
जीवों के साथ तुम्हारा यह खिलवाड़ 
मुझे राजनीतिक नज़र आता है 
मैं चाहता हूँ, 
सब एक समान हो जायें
जैसे सब नंगे जन्म लेते हैं 
और ख़ाली हाथ मरते हैं। 

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