आत्म चिंतन
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
जब कुछ पुराने सम्मानित सहयोगी, सलाहकार, हितैषी, चाहने वालों . . . से काफ़ी समय से संपर्क नहीं होता है, न फोन, पत्र, व्यक्तिगत किसी भी माध्यम से। तो इसका मतलब ये क़तई न निकालें कि सामने वाला उन्हें भूल चुका है। यादें ज़िन्दा रहती हैं, बस वे सो जाती हैं या यूँ कहें कि कुछ धूमिल हो जाती हैं।
इंसान जब पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक संघर्षों से जूझता है तब वह अपने सच्चे चाहने वालों से धीमे-धीमे दूर होता चला जाता है। और सच्चे हितैषी उसे स्वार्थी समझ बैठते हैं। बस यहीं से आपसी सम्बन्ध टूटते चले जाते हैं।
कुल मिलाकर ग़लती दोनों तरफ़ से होती है। तो क्यों न इस ग़लती को समय रहते पुनः सुधारा जाये। आइए मिलाइए हृदय से हृदय . . .
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