आस्तीन के साँप
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
हम उनकी हर ग़लती को
नज़रअंदाज़ करते रहे
वे नफ़रत के ख़ंजर
पीठ पीछे घोंपते रहे
हम मासूम से समझ उन्हें
हर क्षण माफ़ करते रहे
वे इसे हमारी कमज़ोरी समझ,
चाल पर चाल चलते रहे
हम उनकी हर
अच्छी-बुरी बात मानते रहे
वे हमारे घावों पर
नमक लगाते रहे
हम आँख बंद कर
विश्वास करते रहे
वे नफ़रत के ख़ंजर
पीठ पीछे घोंपते रहे
हम उन्हें इज़्ज़त के
इत्र से नहलाते रहे
वे मुँह पर हमारे
कालिख मलते रहे
हम उनकी हर ग़लती को
नज़रअंदाज़ करते रहे
वे आस्तीन के साँप
हम दूध पिलाते रहे, वे डसते रहे
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