दो जून की रोटी

01-06-2024

दो जून की रोटी

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

दो जून की रोटी 
यूँ ही नहीं मिलती 
कोई कड़ी धूप में चलाए फावड़ा, 
चलाए कुदाली 
कोई करता साफ़ गंदी नाली। 
 
दो जून की रोटी 
यों ही नहीं मिलती 
कोई तेज़ धूप में खींचता रिक्शा
कोई रात-रात भर जागे
मेहनत करे कल कारख़ानों में . . . 
 
दो जून की रोटी 
किसी को मिलती बड़ी मुश्किल से तो 
कोई काजू, बादाम, पिस्ता उड़ाए 
जब मेहनत और क़िस्मत रंग दिखाये 
रे हरिया! जीवन बदल जाये। 

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