भय में ज़िन्दगी 

01-03-2025

भय में ज़िन्दगी 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


पिंजरे में बंद ज़िन्दगी,
भय में ज़िन्दगी 
क़तरा-क़तरा ज़िन्दगी। 
  
दिन में, रात में
कई-कई बार मरती ज़िन्दगी 
अजीब सी सिहरन महसूस कराती ज़िन्दगी,
मंद-मंद सी चलती ज़िन्दगी। 
 
पल-प्रतिपल 
रगों में दौड़ती ज़िन्दगी,
एक अदृश्य डर के आग़ोश में समाती ज़िन्दगी। 
 
ब्रह्मांडीय होती ज़िन्दगी,
साँचे से बाहर निकलती ज़िन्दगी,
संसार से जुड़ाव तोड़ती ज़िन्दगी। 
 
पिंजरे में बंद ज़िन्दगी 
आज़ाद होना चाहती ज़िन्दगी 
कैसी करवट बदल रही ज़िन्दगी . . .? 

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