अपने तो अपने होते हैं

01-04-2024

अपने तो अपने होते हैं

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मर-मर कर देख लिया 
जी-जी कर भी देख लिया 
अपनों का स्नेह देख लिया 
अपनों का अपनत्व भी देख लिया
 
चंचल मन मेरा पगलाया
मन की पीड़ा ने बहुत रुलाया 
दर-दर भटका चैन कहीं न पाया 
फिर अपनों ने ही गले लगाया 
 
जीना हो या मरना, धन ही काम आता
धन का जादू सबको भरमाता
साधु-संत हों या गृहस्थ हों धन सबके काम आया 
धन बिन अच्छा-बुरा कोई कार्य पूर्ण न हो पाया
 
माँ के स्नेह से डरकर यमराज भाग जाये
पिता के आशीर्वाद से कंगाली छूमंतर हो जाये
जगत में कुछ भी कर लेना पर अपनों का साथ न छूटे
अपने तो अपने होते हैं, ये नाज़ुक रिश्ते कभी न टूटें

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