धोखा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

वे ढूँढ़ रहे हैं दोष हमारे
जब से हुए हैं उनके वारे-न्यारे। 
 
वे कभी हमारी डाँट पर भी मुस्कुराते रहते थे
आज हम मौन हैं और वे आँखें दिखा रहे हैं। 
 
हमने उन्हें बढ़ने दिया साथ-साथ डगर पर
वे हमीं को धकेल कर आगे बढ़ गये हैं। 
 
उनके मन में दिन-ब-दिन बढ़ रही है कलुषता
हम अभी भी प्रेम के वे बीते पल ढूँढ़ रहे हैं। 
 
उनके मासूम चेहरे से खाया है धोखा 
आज अमीरी के मुखौटे में वे कुटिल हँसी हँस रहे हैं। 
 
अब उनकी बातें हुई हैं ज़हरीली
फ़र्श से अर्श तक पहुँचने की कहानी हमें पता है। 
 
ख़ून पीकर भी उनकी प्यास बुझती नहीं है 
वे कर लें लाख अभिनय सच्चाई किसी से छिपती नहीं है। 

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