मेरा हृदय लेता हिलोरे
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
मेरा हृदय लेता हिलोरे,
आ जाएँ बचपन के वे दिन कोरे।
उलझनों, झंझटों से छुटकारा था,
बचपन मेरा बड़ा सलोना था,
खेतों में, खलिहानों में घूमना था ।
पोखर में रोज़ छुट्टी के बाद नहाना था॥
माँ का प्यार, पिताजी का दुलार था,
ममता का साया मेरे सिर पर था।
रुखा-सूखा खाना था,
रोज़ मौज से स्कूल जाना था॥
मेरा हृदय लेता हिलोरे।
आ जाएँ बचपन के वे दिन कोरे॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अपने तो अपने होते हैं
- आयी ऋतु मनभावन
- आस्तीन के साँप
- इंतज़ार
- इष्ट का सहारा
- ईश्वर दो ऐसा वरदान
- ऐ सनम मेरे
- कवि की कविता
- कृपा तुम्हारी भगवन
- कृषक दुर्दशा
- गाँव की भोर
- गुलाबी ठंड
- चिट्ठियों वाले दिन
- जल
- दर्द
- दीप जलाएँ
- दो जून की रोटी
- धरती की आस
- धोखा
- नव निर्माण
- नव वर्ष
- पछतावा
- पहाड़
- पुरुष
- प्रणाम बारम्बार
- प्रार्थना
- प्रिय
- बसंत आ रहा
- बाबाओं की फ़ौज
- भारत गौरव
- मनुष्य और प्रकृति
- माँ मेरी
- मेरा गाँव
- मेरा भारत
- मेरा हृदय लेता हिलोरे
- मेरी कविता
- मेरी कविता
- यादें (मुकेश कुमार ऋषि वर्मा)
- राखी
- वृक्ष
- शिक्षा
- सच्चा इल्म
- सावन में
- स्मृतियाँ
- हादसा
- हे ईश्वर!
- हे गौरी के लाल
- हे दयावान!
- हे प्रभु!
- हे प्रभु!
- हे शारदे माँ
- ज़िन्दगी
- कविता - हाइकु
- किशोर साहित्य कविता
- बाल साहित्य कविता
- चिन्तन
- काम की बात
- लघुकथा
- यात्रा वृत्तांत
- ऐतिहासिक
- कविता-मुक्तक
- सांस्कृतिक आलेख
- पुस्तक चर्चा
- विडियो
-
- ऑडियो
-