धरती की आस

15-08-2023

धरती की आस

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


धरती के मन में थी एक आस। 
वो व्याकुल थी भारी, लगी प्यास॥
 
झुलस-झुलस काया हुई बंजर। 
बिरहन हृदय में चलते ख़ंजर॥
 
पुलकित हो ईश्वर से ध्यान लगाया। 
दुःखी धरा ने मनचाहा वर पाया॥
 
धरती की ख़ाली झोली भर दी। 
सूखे तन पर जलधार दी॥
 
भीगा धरा का अंग-अंग। 
बहे नदिया धारा-हिलोरें संग-संग॥
 
पृथ्वी हो गई हरी-भरी। 
नदी, पेड़, पर्वत लगें मनोहारी॥
 
पशु-पक्षी, कीट-पतंगे गाते प्रेम गीत। 
मेंढक, झींगुर रातों को बजाते संगीत॥

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