मासूम सी मुस्कान

15-10-2023

मासूम सी मुस्कान

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

घर पर कार्य चल रहा था। दोपहर को अपने मज़दूर के लिए नाश्ता लेने मैं हलवाई की दुकान पर चला गया। नाश्ता पैक कराकर हलवाई से पूछा, “कितने पैसे हुए?”

“साठ रुपए।”

“पचास में काम चल जायेगा ना?”

वह मान गया। मैंने दस रुपए का नोट अपनी क़मीज़ की जेब में रखा और नाश्ता थैले में। बाइक को पहली किक मारी ही थी कि अचानक से मेरी नज़र सड़क की दूसरी ओर बैठे एक साँवले से कमज़ोर लड़के पर चली गई। वह शायद किसी ईंट भट्ठे पर कार्य करने वाले मज़दूर का बेटा था ‌। हो सकता है, उसका पिता अंदर गली में ईंटों की भरी ट्राली ख़ाली कर रहा हो और वह उसी की प्रतीक्षा में बैठा हो।

मैंने उसे पास आने का इशारा किया, वह आ गया। उसे दस रुपए का नोट थमा दिया, “जा कुछ खा ले।”

वह मासूम सी मुस्कान के साथ चला गया। उसकी मुस्कान ने हृदय को असीम शान्ति प्रदान की . . .।

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