दर्द

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


वो उर में ज़ख़्म करके जाने लगे, 
हमने रोका तो मुस्कुराने लगे। 
 
हमने सुनाई अपनी कहानी, 
वो बेदर्द हँसी हँसने लगे। 
 
हमेशा उनकी ज़िद के आगे हम ही झुके, 
दिखाकर ख़्वाब हसीं वो धोखा देने लगे। 
 
नींद आती नहीं उनकी याद में रातभर 
वो हमें फोन पर ही बहलाने लगे। 
 
अश्क आँखों से बहते रहे, 
दिया जो दर्द हम वह सहने लगे। 
 
हम भीतर ही भीतर टूट गये, 
जब से वो प्रचुर सताने लगे। 
 
माँगते हैं दुआ रब से वो जीते रहें
बेशक वो हमें छोड़ दूर जाने लगे। 

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