एक दिन अलीगढ़ में

01-04-2023

एक दिन अलीगढ़ में

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

अलीगढ़ शहर अच्छा है। इसका प्राचीन नाम कोइल या कोल माना जाता है। अलीगढ़ की पहचान तालों से है। अलीगढ़ के ताले विश्व प्रसिद्ध हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी काफ़ी प्रसिद्ध है। अलीगढ़ के निवासी हिंदी व ब्रजभाषा बोलते हैं। इस शहर की घूमने-फिरने की प्रसिद्ध व अच्छी जगह हैं, अलीगढ़ क़िला, जामा मस्जिद, खेरेश्वर मंदिर, मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी, तीर्थधाम मंगलायतन, बाबा बरछी बहादुर दरगाह, शेखा झील, दोर फोर्टस आदि। 

 मैं अलीगढ़ अब तक दो बार घूम चुका हूँ। प्रथम बार अलीगढ़ महोत्सव में गया था। मित्र जैस चौहान के सौजन्य से। द्वितीय बार गया था, अभी अभी बीती पिछली 6 मार्च 2023 को। मित्र अवधेश से फोन पर बात हुई कि अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज चलना है। हामी भरी और बैग (झोला) उठाकर फतेहाबाद के लिए भाई विजय के साथ बाइक से निकल पड़ा। सर्व प्रथम डाकघर गया कुछ डाक डिस्पैच कराई और फ़्री हो गया। अवधेश को फोन मिलाया। उसने आधा-पौन घंटा इंतज़ार करवाया। 

हमने एक सज्जन के यहाँ से बाइक ली और चढ़ गए यमुना एक्सप्रेस-वे पर। आगरा होते हुए हमारी बाइक ने अलीगढ़ की तरफ़ दौड़ना शुरू कर दिया। बोलते-चालते हम हाथरस की सीमा में प्रवेश कर गये। रास्ते में सड़क किनारे लगे एक ठेले पर छोले-कुलचों का आनंद लिया। अवधेश को स्वाद नहीं आया। मुझे तो आया क्योंकि पैसे अवधेश ख़र्च कर रहा था। 

नाश्ता पानी करके हमारी बाइक फिर से भागने लगी थी। अब हम घूमते-घामते अलीगढ़ शहर में प्रवेश कर गये। हमने अपनी चिह्नित जगह को गूगल मैप में लगा लिया। मोबाइल को देखते हुए और लोगों से पूछते-पाछते हम पहुँच गये, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज। कॉलेज बहुत बड़ा है। हमने फोन मिलाया, हम जिस कार्य से हॉस्पिटल पहुँचे थे उसके लिए। मैंने सबसे पहले अपना मोबाइल चार्ज किया। अवधेश कुछ काग़ज़ी कार्य कराने निकल गया। दो घंटे बाद हमने रक्तदान किया। मेरा यह प्रथम बार था। अवधेश कई बार कर चुका था। अन्य सभी कार्य निपटाकर हम चलने को तैयार हुए तो पूरन सिंह जी ने कहा—अँधेरा हो गया है, सुबह चले जाना। यहीं कहीं बेंचों पर रात गुज़ार लेंगे। हमने मना कर दिया। 

चलिए आपको पूरन सिंह जी का परिचय देते हैं। दरअसल इनकी डेढ़ वर्षीय बेटी के लिए ही हम रक्तदान करने आये थे। इनकी बेटी का हृदय के छेद का ऑपरेशन हुआ था। 

पूरन सिंह जी से विदा लेकर हम वापिस निकल पड़े। बाइक हम बारी-बारी से चला रहे थे, परन्तु अधिक समय तक अवधेश ही चला रहा था। एक जगह हम रुके और हमने राजस्थानी फालूदा का लुत्फ़ उठाया। कुछ आगे चलकर एक साफ़-सुथरे ढाबे पर खाना खाया। 

उजली चाँदनी रात और बाइक का सफ़र वह भी यमुना एक्सप्रेस-वे पर . . . हल्की सर्दी लग रही थी, परन्तु सफ़र का आनंद आ रहा था। खेत, जंगल, बिजली की लाइटें सब अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। 

रात्रि के क़रीब एक बजे मैंने अपने घर की कुंडी खट-खटाई, संयोग से पत्नी की आँख खुल गई। वरना मुझे चोरों की तरह दीवार फाँद कर घर में घुसना पड़ता। 

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