जो कभी न डूबे 

01-10-2025

जो कभी न डूबे 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं जिसे हृदय में धड़काता हूँ 
वो कविता तुम्हें सुनाता हूँ 
हंगामा काटना मेरा मक़सद नहीं 
बस सच को सच तक पहुँचाना चाहता हूँ 
 
मैं जहाँ अपना दर्द भूल जाता हूँ 
वो हालात तुम्हें दिखाना चाहता हूँ 
ग़रीब की क्या पीड़ा होती है 
ए संसद! तुझे बताना चाहता हूँ 
 
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ 
और क्षण-क्षण महसूस करता हूँ 
दुःखद मंज़र राष्ट्र अपने का 
मैं झोपड़ी को महल से मिलाना चाहता हूँ 
 
मैं देव बनना चाहता हूँ 
देवों से काम करना चाहता हूँ 
अँधेरों से लड़कर प्रकाश आएगा 
जो कभी न डूबे ऐसा सूरज उगाना चाहता हूँ। 

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