हादसा
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
कोई घर से निकला था
तो कोई घर को निकला था
एक ख़ुशी थी
मंज़िल पर पहुँचने की . . .
कोई सो रहा था
तो कोई जाग रहा था
सुख-दुःख की बातों में
ये सफ़र मंज़िल की ओर बढ़ रहा था
पर किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था
कि ये सफ़र उनका आख़िरी सफ़र होगा
वे जिस मंज़िल को पाने के लिए यात्रा कर रहे हैं
वो यात्रा कभी पूरी न होगी . . .।
एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ सब कुछ ख़त्म
पटरियों पर बिखरी पड़ी ज़िन्दगी
पूरी तरह से तहस-नहस
सब कुछ अस्त-व्यस्त,
सब कुछ लावारिस . . .
एक हादसे ने,
दर्दनाक हादसे ने
रूह कंपाने वाला मंज़र पैदा कर दिया
चहुँओर चीख-पुकार
दर्द भरी सिसकारियाँ . . .
क्षणभर पहले जो चेहरे हँस रहे थे
मुस्कुरा रहे थे,
बोल रहे थे, कुछ कह रहे थे
वे हमेशा के लिए शांत हो गये।
जिनकी एक पहचान थी
अब उनकी शनाख़्त तक नहीं
वे हो गये गुमशुदा
उनकी पहचान को निकल गया
हादसा . . .
(उड़ीसा रेल हादसे में मृत लोगों की आत्मा को ईश्वर अपने श्री चरणों में स्थान दे)
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