नई सदी का सूरज

01-11-2025

नई सदी का सूरज

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं जागता रहा 
देखता रह खुली आँखों से सपने
बोता रहा आकाश में 
अपना उज्ज्वल भविष्य . . . 
 
तिनका-तिनका जोड़ता रहा 
हौसलों के पंख लगाकर 
उड़ान भरता रहा 
मैं जागता रहा। 
 
सागर तल में उतरा 
मोतियों की तलाश में 
समय की शिला पर लिखा 
मैं बदल न सका 
अब लगाता हूँ हिसाब 
कितना सार्थक हुआ मेरा श्रम। 
 
मैं जागता रहा 
देखता रहा खुली आँखों से सपने 
मेरे गवाह हैं 
वो टूटे-फूटे दुर्गम रास्ते 
जिन पर मैं निरंतर चला 
और दुनिया की हँसी सहता रहा 
जमाने भर का गरल पीता रहा 
मैं अपने भीतर 
नई सदी का सूरज उगाता रहा . . .

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
बाल साहित्य कविता
कविता - हाइकु
किशोर साहित्य कविता
चिन्तन
काम की बात
लघुकथा
यात्रा वृत्तांत
ऐतिहासिक
कविता-मुक्तक
सांस्कृतिक आलेख
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में