धर्म

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

चुनाव सिर पर आ गया था। नेता जी बड़ी चिंता में थे। पिछले पाँच साल में जनता के लिए कुछ भी विकास कार्य तो किये नहीं थे। स्वयं का घर भरा और अपनों का भरवाया। ख़ूब मन भर रंग-रलियाँ की। न जाने कितने निर्दोषों पर मुक़द्दमे ठुकवाये। 

 जनता के बीच अगर वोट माँगने गये तो जनता पक्का जूतों से मारेगी। क्या किया जाये . . .? 

 आख़िर नेता जी की तीसरी आँख खुल ही गई। तुरंत नेता जी ने अपना जुमला तैयार किया। 

“मेरे प्यारे भाइयो-बहिनो अपना धर्म ख़तरे में है। अगर विधर्मी इस बार जीत गए तो हमारी बहनों की इज़्ज़त और हम सबकी जान ख़तरे में पड़ जाएगी।” 

और यह क्या . . .? नेताजी का जुमला चल निकला। जनता पिछले पाँच सालों के दर्द को मिनटों में भूल गई और उसने अपने नेता जी का झंडा उठा लिया, ताकि धर्म सुरक्षित रहे। 

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