प्रिय

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

कदम्ब की डाल बैठ पपीहा कूक रहा 
आया वसन्त भँवरों का मन डोल रहा 
 
रंग-बिरंगी तितलियों की मुस्कान मनोहर
फूलों का चुरा पराग मधुरूपी हुआ शृंगार
 
चल रही वसंती बयार, हरे-भरे खेत झूम रहे
कृषक भर जाएगी झोली, गीत वसंती गा रहे
 
मन्द-मन्द सुगंध प्रिये की ज़ुल्फ़ें फैला रहीं
सब दिशाएँ रंग पीत लेकर यौवन ला रहीं
 
फूल उठा कचनार पाकर सुखद संदेश 
रातभर रोई चकोरी छोड़ गये प्रिय स्वदेश
 
बिन प्रीतम के सूना-सूना फाग लगे 
मिलन की आस में अखियाँ रोज़ जगें
 
बीतीं मधुमय रातें, छोड़ प्रिय जा बसे परदेश 
मन में बसीं सुखमय सरस रसभरी यादें शेष 
 
आया वसंत . . . प्रिय तुम भी आ जाओ 
कौन लगाये फाग रंग, प्रिय तुम्हीं बताओ

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