समय की चादर

01-10-2021

समय की चादर

मधु शर्मा (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सुख-दु:ख के तानों-बानों से बुनी हुई,
न मैली हो, न फटे या हो पुरानी कभी।
 
उठते-बैठते, सोते-जागते, सुबह-शाम
एक शिशु के सिक्युरटी-कंबल समान,
आँखों से ओझल इसे होने न दीजियेगा,
ग़लत हाथों सौंपकर खोने न दीजियेगा।
 
सुख-दुख कर रहे उपकार समझियेगा,
प्रकृति द्वारा दिया उपहार समझियेगा।
जीवन का भरपूर आनंद तभी ले सकेंगे,
समय की चादर को यदि सम्भाले रहेंगे।

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