एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
तुम्हारी याद 

जुदाई के अंगारों पर 
तेरी याद की नीली चादर ओढ़कर 
जब चलती हूँ तो 
अंगारे फूल बनकर पाँव चूमते हैं 
तुम्हारी मुहब्बत मेरे शरीर में 
साज़ बनकर जब छिड़ती है 
आँखों के जागरण मुस्कुराते हैं 
जज़्बात का समन्दर ख़ामोश है पर 
नयन साहिल, फिर फिर छलकते हैं! 

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