नव निर्माण

01-11-2019

आसमान पर डाला डेरा 
गाँव-शहर सबको आ घेरा 
बड़ी दूर से चलकर आये 
जाने कहाँ-कहाँ से आये 
तरह-तरह के रूप बनाकर 
बरसाते हैं मस्त फुहार 
आ गये बादल लेके उपहार 
समीर गा रही मीठी मल्हार 

 

सौंधी-सौंधी ख़ुशबू आती 
कृषक मायूसी छटती जाती 
करे प्रतीक्षा सजनी चिट्ठी की 
भूले सजन सुध मिट्टी की 
मेघ बरसते-मन तरसते 
नयनों से नित झरने झरते 
कौन सुने प्यासी पुकार 
तपती धरती करे मनुहार 

 

रे बादल मनभर बरसना 
गरज-गरज कर बरसना 
रह न जाये अधूरी आस 
उड़ाये न कोई उपहास 
तेरा अंश-अंश धरती के अंग 
धरती के यौवन में उठे तरंग 
तेरा बरसना, बरस कर जाना 
सृष्टि का नव निर्माण करना 

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