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होंठ सीकर चुप्पियों में जीता रहा आदमी
दर्द आँसू, ज़हर ख़ून पीता रहा आदमी
तुम ज़रा दाग़ पर दामन बदलने की सोचते
दाग़-वाली, कमीज़ों को सीता रहा आदमी
जल उठे जंगलों में उम्मीदों के परिंदे कहाँ
सावन दहाड़ता ख़ूब चीता रहा आदमी
काट ले बेसबब, बेमतलब उनको, बारहा
महज़ उदघाटनों का ये, फीता रहा आदमी
साफ़ नीयत, पढ़ो तो, किताबें कभी, संयम की
हर सफ़ा के तह क़ुरान-गीता रहा आदमी