रमक-झूले की पेंग नन्हा बचपन (रचनाकार - पाण्डेय सरिता)
नन्हा बचपन 49
बस और प्रदूषण की जो परेशानियाँ झेलती हुई पहुँची थी। त्रिवेंद्रम वापसी समय रेल रूट में बेहद आरामदायक स्थिति में सफ़र तय करने में कुछ पता ही नहीं चला।
त्रिवेंद्रम! क्या आप जानते हैं? यह नाम अँग्रेज़ों द्वारा दिया गया नाम है। तिरुवनंतपुरम भगवान विष्णु की शेष शैय्या युक्त हज़ार सिर वाले नाग के नाम पर है। यह शहर भगवान की भूमि कहलाती है। यह नाम इस शहर के मध्य में स्थित श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में वास करने वाली मूर्ति के नाम और पहचान से जुड़ा है।
यह शहर सात पहाड़ियों के बीच में स्थित है। जनश्रुतियों में, दानी महाबली का शासन पाताल लोक जाने से पहले यहीं पर माना जाता था।
“आप लोग अपना हनीमून मनाइए,” कहकर रागिनी-राजीव, करुणा को उसी रेस्ट हाउस में छोड़ कर मेघना चली गई। जिसे सारी व्यवस्था के साथ अतिथियों के लिए मेघना ने नियत करवाया था। वह अपनी अन्य महिला सहकर्मियों के साथ जहाँ पहले से ही रहती थी, वहीं रहती थी ताकि राजीव और रागिनी की निजता में कोई बाधा ना पड़े।
सुनकर, राजीव ने रागिनी को छेड़ते हुए कहा, “तुम्हारी बहन भी बहुत ख़ूब है। हमारे हनीमून की व्यवस्था कुछ ज़्यादा ही जल्दी नहीं कर दी है? पूरे पाँच साल बाद की है, जिसमें ढ़ाई साल की बेटी भी साथ आई है।”
रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब मेघना के साथ-साथ आप भी बच्चा बनना बंद कीजिए।”
हाँ, तो अगले दिन एक पड़ोसन आंटी के यहाँ डोसा-सांभर की व्यवस्था के साथ दोपहर भोजन पर निमंत्रण था। दस-साढ़े दस बज चुके थे, पर उनके पास मेघना अभी तक नहीं आई थी। सुबह-सुबह उठ कर राजीव टहलते हुए जाकर स्थानीय सैलून से दाढ़ी बाल बनवाने के बाद आवश्यक दूध-सब्ज़ी सब कुछ लेकर पहुँच चुके थे। अब तक मेज़बान ग़ायब है। यह बात अस्वीकार्य मान कर राजीव धरने पर बैठ गए।
अभी-अभी तक तो अच्छे भले थे। अकस्मात् से ऐसा क्या हो गया भला? इस तरह मुँह फुलाकर बैठ गए। जाने-अनजाने अपने द्वारा की गई ग़लतियों की सूची दुहराने की, बहुत याद करने की कोशिश की पर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। सचमुच, वो बहुत प्रयास करने लगी ताकि कुछ तो जान-समझ सके। ऐसा भला क्या हो गया? कौन सा ऐसा तूफ़ान आया? या भूकंप? कुछ पता तो चले? ऐसे में आख़िर बहन क्या सोचेगी? मामला जितनी जल्दी रफ़ा-दफ़ा हो जाए बेहतर हो। वह बुद्धिमानी से लेकर मूर्खतापूर्ण सैकड़ों सवाल करती हार गई।
अन्ततः पता चला, “आज्ञा देकर विजय गोल!” अर्थात् मेघना के अब तक के ग़ायब होने से महाशयजी नाराज़ हैं और इतने नाराज़ हैं कि आंटी के यहाँ दोपहर के भोजन पर नहीं जाएंँगे। तबीयत ठीक नहीं है। पेट गड़बड़ है। हद होती है मूर्खता की। नहीं जाने का विचित्र नाटक भी ख़ूब है।
धमकी दे चुके हैं, “चुपचाप तुम लोग चली जाना। यदि साथ चलने के लिए कहोगी तो समझ लेना। आज बिगाड़ हो जाएगा अर्थात् कोई अनर्थ हो जाएगा। ऐसी धमकी सुनकर रागिनी के पास और कोई विकल्प नहीं बचा था। या तो वह मौन रहकर सामने से हट जाए या फ़ालतू के अनावश्यक, मूर्खतापूर्ण बकवास झेले।
अन्ततः माँ-बेटी तैयार हो कर मेघना के सामुदायिक भवन की ओर बढ़ चली। जहाँ वह संपूर्ण सफ़ाई अभियान के बाद कपड़े आयरन करने में व्यस्त थी।
कुछ देर बाद अन्य कामों को निपटाने के बाद दोनों बहनें आंटी के यहाँ पहुँची। जिसमें राजीव के बारे में आंटी ने कई सवाल कर दिए। रागिनी को वही जवाब देना पड़ा कि पेट में पाचन संबंधी समस्या है इसलिए वो नहीं आए।
करारे-करारे स्वादिष्ट डोसे को खाते समय रागिनी का मन व्यथित हो रहा था। राजीव को कितना अच्छा लगता। पुरुष के प्रेम में सचमुच स्त्री अपना जीवन भूलने लगती है।
पर उस अहंकारी सनक का क्या? जो ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है। ज़बरदस्ती किसी तरह औपचारिकता पूरी करती हुई रागिनी, मेघना के साथ भागी वापस आई। आंटी द्वारा दिए गए टिफ़िन में राजीव के लिए कुछ पकौड़े वग़ैरह लाकर थमा दिए।
भूखा क्या ना करता? फिर क्या सारे गुमान और अभिमान का क़िला अब तक ध्वस्त हो चुका था। वह जब-तक खाने में व्यस्त था इधर रसोई में फटाफट दोनों बहनें राजीव के भोजन की व्यवस्था कर रही थीं। खाना खाने के बाद सामान्य होकर मेघना से आगे की योजना बनाते बातों में व्यस्त हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो।
शाम के समय कैंपस के बाग़ीचे और खेल के मैदान में करुणा को लेकर मेघना निकली हुई थी। पीछे-पीछे रागिनी भी पहुँच गई। तभी एक छोटे बच्चे को किसी प्रकार उठाने की कोशिश करती करुणा आई और अपनी माँ की गोद में उस बच्चे को ज़बरदस्ती डाल दिया। साथ में उसकी माँ भी थी पर करुणा उस बच्चे को किसी को भी छूने देने के लिए तैयार ही नहीं थी। यहाँ तक कि उसकी माँ को भी नहीं। जैसे ही बच्चे की माँ अपनी गोद में लेने के लिए हाथ बढ़ाती, करुणा आक्रामकता से उसके माँ को नोंचने के लिए झपटती। “मेरा बाबू है ना?” कहकर दंतुरित मुस्कान कभी उन्मुक्त हँसी से उल्लसित भर उठती। शाम हो रही थी बच्चे की माँ घर लौटना चाह रही थी। करुणा अपनी ज़िद पर अड़ी हुई थी, “ऐ मत छूना! . . . मेरा बाबू है . . . माँ, इसे दूध पिला दो . . . पिलाओ ना।” . . . रागिनी से ज़िद करती रोने लगी वह! बहुत बहलाने, समझाने के बावजूद वह अपनी ज़िद पर अड़ी रही।
बहुत मुश्किल से उसके पिता जब ज़बरदस्ती गोद में उठा कर बाज़ार लेकर बाहर गए, जहाँ से वापस लौटती थककर सो चुकी थी। आज शाम की उसकी इस हरकत से राजीव और रागिनी अंदर तक सोचने के लिए विवश हो चुके थे।
अगली योजना त्रिवेंद्रम के पद्नाभ स्वामी मंदिर और महल घूमने की थी। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के दर्शन के लिए स्त्रियों को साड़ी और पुरुषों को धोती पहनना अनिवार्य है। यही वस्त्र तो कन्याकुमारी मंदिर में प्रवेश के लिए भी है। जिसका नियमपालन अनिवार्य है। जिसके लिए राजीव को तैयार करना एक टेढ़ी खीर थी। पर वह बड़ी सहजता से तैयार हो कर दर्शन कर लिए। रागिनी को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए था! वह अति प्रसन्न और संतुष्ट थी।
कनकाकुन्नू महल, त्रावणकोर के राजा के भव्य जीवन की स्मृति चिह्न लिए एक समृद्ध विरासत है। जिसकी भव्य वास्तुकला आंतरिक और बाह्य दृष्टि से अनोखी है। महल का बहुत बड़ा हिस्सा तो पर्यटन की दृष्टि से उन दिनों बंद था। पर कुछ हिस्से जो सार्वजनिक पर्यटकों के लिए खुले थे कला पारखी दृष्टि में अद्भुत लगे।
रागिनी अनुभव कर पा रही थी द्रविड़ संस्कृति की उज्ज्वल, मनोरम विरासत की गाथा कहती चंदन की इमारती लकड़ियों से बनी नक़्क़ाशीदार खिड़कियों की बनावट ऐसी कि महल के अंदर से वहाँ बैठ कर बाहर का प्रत्येक व्यक्ति और दुनिया की गतिविधियों को देख सकता है। पर बाहर से कुछ भी किसी को पता नहीं चलने वाला। हवा का अबाध प्रवाह शान्ति एवं शीतलता प्रदान करने वाली, कभी कैसे यहाँ के लोगों को मंत्रमुग्ध करती होगी?
राजसी उपयोग में आने वाली दैनिक उपभोग की प्रत्येक वस्तुओं और उनकी बनावट को रागिनी बाल-सुलभ जिज्ञासा भर कर देख रही थी। राजीव मज़ाकिया अंदाज़ में रागिनी को कुछ-कुछ बोल-बोल कर चिढ़ाने में व्यस्त था।
<< पीछे : नन्हा बचपन 48 आगे : नन्हा बचपन 50 >>विषय सूची
- नन्हा बचपन 1
- नन्हा बचपन 2
- नन्हा बचपन 3
- नन्हा बचपन 4
- नन्हा बचपन 5
- नन्हा बचपन 6
- नन्हा बचपन 7
- नन्हा बचपन 8
- नन्हा बचपन 9
- नन्हा बचपन 10
- नन्हा बचपन 11
- नन्हा बचपन 12
- नन्हा बचपन 13
- नन्हा बचपन 14
- नन्हा बचपन 15
- नन्हा बचपन 16
- नन्हा बचपन 17
- नन्हा बचपन 18
- नन्हा बचपन 19
- नन्हा बचपन 20
- नन्हा बचपन 21
- नन्हा बचपन 22
- नन्हा बचपन 23
- नन्हा बचपन 24
- नन्हा बचपन 25
- नन्हा बचपन 26
- नन्हा बचपन 27
- नन्हा बचपन 28
- नन्हा बचपन 29
- नन्हा बचपन 30
- नन्हा बचपन 31
- नन्हा बचपन 32
- नन्हा बचपन 33
- नन्हा बचपन 34
- नन्हा बचपन 35
- नन्हा बचपन 36
- नन्हा बचपन 37
- नन्हा बचपन 38
- नन्हा बचपन 39
- नन्हा बचपन 40
- नन्हा बचपन 41
- नन्हा बचपन 42
- नन्हा बचपन 43
- नन्हा बचपन 44
- नन्हा बचपन 45
- नन्हा बचपन 46
- नन्हा बचपन 47
- नन्हा बचपन 48
- नन्हा बचपन 49
- नन्हा बचपन 50