विश्व कविता दिवस 21/03 . . .
पाण्डेय सरिताप्रकृति के पौरुष से उपजे
जन्म-मरण के प्रसव पीड़ा पर
गाती गीत,
पत्थर पर उगी दूर्वा सी
मुझे लगी कविता . . .
स्पन्दित धड़कनें सुनाती,
मृत्यु पर जीवन की प्रीत
मुझे लगी कविता। . . .
समन्दर की लहरों में घहराती,
बादलों में मंडराती,
चपला सी जगी कविता! . . .
हिमगिरि के उन्नत शिखरों से बल खाती,
जंगल-जंगल, गह्वर,
ग्राम–नगर मदमाती,
इतराती—इठलाती सागर से
मिलनोत्सुक ऋतम्भरा
सरिता सी लगी कविता! . . .
उद्वेलित, आंदोलित करती
कालचक्री संघर्षों की निर्जन मरुभूमि में,
मरुद्यान सी कविता! . . .
त्रिकाल दर्शी क्षण-क्षण,
अणु-अणु, कण-कण,
मृदुल-कठोर,
विरोधी-समानार्थी,
गुरुता–लघुता सर्वस्व समेटे
अनन्त ब्रह्मांड के विराट
स्वरूप को सरसों के दाने
में समाहित क्षमता!
मुझे लगी कविता! . . .
जीवन की नकारात्मक असंवेदनशील
बंजरता को देती चुनौती
ऐसी संजीवनी शक्ति,
पाताल फोड़ मनसपटल की
धरती पर फूटती,
अनन्त आकाश में आकाशगंगा सी
है कविता! . . .
बंधन मुक्त होकर भी
जो बंधन स्वीकारे,
रसे-बसे अनुभवों से
गुज़र कर हमारे,
ओंकार,
जगत-कल्याणमय नीलकंठ महादेव सा,
वर्णों-शब्दों के ताने-बाने
नादमय अंकिता!
है ऐसी कविता!
2 टिप्पणियाँ
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सरिता जी, प्रत्येक पंक्ति के लिए भावपूर्ण शब्दों का आप द्वारा किया गया चयन इस कविता को बारम्बार पढ़ने पर मजबूर कर रहा है।
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बहुत सुन्दर कृति सरिता जी मलय समीर सी सुगंधित, सरित सी प्रवाहिनी कोमलांगी पुष्प जैसी भावभीनी रागिनी ,बधाई।