बच्चे

पाण्डेय सरिता (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

पिग्गी बैंक जैसे पाँच नन्हें नवजात बच्चों के साथ मादा सूअर चर रही थी। हल्के गुलाबी-गुलाबी, छोटे-छोटे बच्चे बड़े सुन्दर प्रतीत हो रहे थे। 

प्राकृतिक सजीव खिलौने, जिनकी मनोहारी छवि देखने के लिए, मैं पल भर के लिए रास्ते पर ज़रा सा रुक गया था। सचमुच बड़ा वात्सल्यपूर्ण दृश्य था। दो बच्चों के पिता रूप में पशुओं के बच्चों को देखकर भी दया और करुणा जागृत होने लगती है। 

जिसे देख कर ना जाने क्यों? कुछ ख़तरा भाप कर कुँड़-कुँड़ कर अपने स्वर में माता ने कुछ कहा। जिसे सुनकर एवं समझकर बच्चे बड़ी तेज़ी और कुशलता से एक-एक कर, क्षण भर में ही समीपवर्ती झाड़ियों के अंदर छिप गए। मादा सूअर अपनी बच्चों की रक्षा के लिए मेरी तरफ़ आक्रामक मुद्रा में तैयार थी। जिसे देख कर आभास हुआ, “अच्छा यह अपने बच्चों के लिए मुझे ख़तरा मान रही है।”

झट से वहाँ से हटने में ही भलाई थी, इसलिए मैं अग्रसर हो गया। पर, मेरे दिमाग़ में उन शिशुओं की स्थायी छवि कहीं ना कहीं अंकित रह गई थी। 

अगले दिन शाम को ड्यूटी से घर लौटने पर दुःखी चौदह वर्षीया बड़ी बेटी ने आँखों देखा वृत्तांत सुनाया, “पता है पापा? जाने कैसे एक सूअर का बच्चा, अपनी माँ से विलग हो कर नाले में गिर गया था, जिसे दो कुत्ते मार कर खा गए। मैं उन्हें भगाती रह गई पर वो उसकी गर्दन दबोच कर झाड़ियों में उठा ले गए। मैं उसे बचा नहीं पाई।”

सुनकर मन में आया, “बच्चे हमेशा असुरक्षित हैं चाहे पशु के हों या आदमी के। जिनपर अक़्सर अवसरवादी, शिकारी गिद्ध-दृष्टि लगी रहती है। कल ही तो समाचार में पढ़ा था कि घर में सात वर्षीया बच्ची अकेली थी। बलात्कार का प्रयास असफल करने की कोशिश में चिल्लाने पर, दो शराबियों द्वारा गला रेत कर मार डाली गई। करुण, हृदय-विदारक स्थितियाँ-परिस्थितयाँ इस जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। जहाँ माता-पिता रूप में पल-पल सावधान रहना पड़ता है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।”

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