घूँघट और जान

01-01-2022

घूँघट और जान

पाण्डेय सरिता (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

यह एक स्थानीय घटना है। दो भाई थाने पहुँचे हैं। “दुलहन भाग गई है” की रिपोर्ट कराने। स्थानीय और पारिवारिक सदस्यों में हलचल मची हुई है। 

यह विवाह, प्रेम विवाह तो था नहीं, सामाजिक औपचारिकताओं को पूरा करते हुए बड़ी मुश्किल से किसी तरह हुआ था। नवविवाहित युवक तो नहीं था वह, पैंतीस-अड़तीस साल का पारंपरिक सोच वाला कुंठित आदमी था। वह अपने बड़े भाई के साथ अपनी दुलहन को मायके से ससुराल विदा करा कर रेलगाड़ी से, ला रहा था। बीस-बाईस वर्षीया दुलहन, गाढ़ी बनारसी साड़ी में पूरी तरह ज़ेवर-गहनों से लदी हुई अपने जेठ जी के सम्मान में पूरी तरह घूँघट में थी। 

रास्ते में उसे बाथरूम जाने की ज़रूरत पड़ी, तो पति से बोली परन्तु पति ने अपने भाई के सामने संकोचवश पत्नी को बाथरूम ले जाना उचित नहीं समझा। उसकी बात सुनकर भी अनसुना-अनदेखा कर दिया। अन्ततः वह अकेली ही किसी तरह बाथरूम जाने के लिए अपनी जगह से उठ कर गई थी जो फिर वापस नहीं आई। 

जिसे दोनों भाइयों ने भगोड़ी दुलहन मान लिया, और घर-परिवार की सर्व सम्मति से थाने में रपट करा दी। 

इधर घने जंगलों में रेलवे ट्रैक के किनारे, पेट्रोलिंग करते हुए लोगों को किसी स्त्री की लाश मिली है। वह लाश नवविवाहिता कपड़ों में है। शरीर पर सारे ज़ेवर-गहने सुरक्षित हैं। चलती ट्रेन से गिरकर मरने का मामला लग रहा था। 

दोनों भाइयों और उसके मायके वालों को बुलाकर पहचान कराइ गई, तो पता चला कि वही है। वह दुलहन पहली बार रेलगाड़ी में सफ़र कर रही थी। घूँघट की आड़ में बाथरूम के दरवाज़े के बदले में मुख्य दरवाज़े को खोल कर अचानक ही गिर पड़ी होगी या हाथ धोने के लिए दरवाज़े के पास बेसीन के पास खड़ी होगी और तेज़ मोड़ पर गतिशील रेल की अकस्मात् उत्पन्न असंतुलन में खुले दरवाज़े से गिर पड़ी होगी। 

अपने परिवार की इकलौती और लाड़ली, गृहस्थी के नवजीवन की शुरूआत करने निकली थी। पर, परम्परा निर्वाह के अति उत्साह में अपने घूँघट और पति के संकोची असहयोग की क़ीमत जान देकर चुकानी पड़ी। 

1 टिप्पणियाँ

  • 31 Dec, 2021 06:34 PM

    उफ़ । दर्दनाक । क्या आज भी ? किस सदी में हम जी रहे हैं ? इस मामले में लगता है यक़ीनन नहीं, दक्षिण भारत इतनी कुंठित सोच नहीं रखता । कुछ तो आगे ही है । पता नहीं । शायद ! जहां तक देखा है । मर्मस्पर्शी ।

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